A letter to prime minister(AAWAJ)

एमवीएम भोपाल मैं पढ़ने वाली जागरिक संजना सिंह को जब मूल कर्तव्य 6 का एक कार्ड प्राप्त हुआ| इस कार्ड में दिए हुए टास्क को संजना सिंह को अकेले करना था, क्योंकि यह एक स्वयं का टास्क था। जब संजना सिंह ने यह कार्ड देखा तो उसने फैसला किया कि उसे गोल्ड टास्क लेना है। इस टास्क में उसे प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखना था जिसमें देश में चल रही "चलता है" वाली सोच को बदलने के लिए अपनी राय रखनी थी एवं देश के संवेदनशील मुद्दों से उन्हें परिचय कराना था तथा अपना रुख उनसे साझा करना था।

 

संजना सिंह ने प्रधानमंत्री महोदय को एक चिट्ठी लिखी इसमें संजना सिंह प्रदेश में सरकारी स्कूल व कॉलेज की समस्याओं को सामने रखते हुए बताया कि यहां सत्र भी आरंभ होता है, समय सारणी भी बनती है परंतु कक्षाएं कभी चालू नहीं होती और जो समय सारणी बनाई गई है उस पर भी अमल नहीं होता है और जब साथी विद्यार्थियों या किसी से भी  इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए बात करते हैं तो वह कहते हैं कि सरकारी शैक्षणिक स्थानों पर तो यही "चलता है"।

 

उन्होंने अपने पत्र में यह भी लिखा कि हमारे देश के नागरिक जागरूक तो हैं परंतु स्वयं से किसी भी बदलाव में योगदान देने से न जाने क्यों कतराते हैं, जैसे  कचरा अपने आसपास देखते हैं तो उसकी आलोचना तो कर लेंगे परंतु जो यह काम कर रहा है उसे रोकेंगे नहीं और यही कहेंगे कि यह तो इस देश में "चलता है"।

इस पर संजना सिंह ने अपनी टिप्पणी व सुझाव भी दिए हैं जिससे लोगों को स्वप्रेरणा के लिए जागरूक किया जा सकता है।

 

अपने पत्र में उन्होंने दो मुद्दों को भी स्थान दिया जो कि काफी संवेदनशील है पहला है महिला सुरक्षा दूसरा है बाल सुरक्षा। आज आजादी के 70 वर्ष बाद भी महिलाएं असुरक्षित है उनके साथ बलात्कार, छेड़छाड़ जैसी कई समाज को शर्मसार करने वाली घटनाएं आए दिन में सुनने को मिलती हैं। जब हम बात बच्चों की करते हैं तो हमारे आस पास से ही न जाने कितने बच्चे रोज गायब हो रहे हैं, जिनमें 10 में से दो बच्चे कभी मिलते नहीं है। उन्हें या तो बेच दिया जाता है या बाल मजदूरी आदि के घिनौने धंधे में  लगा दिया जाता है।

 

जब हमारे रक्षक अर्थात पुलिस की हम बात करते हैं तो इन मामले में उनका भी रुख साफ नजर नहीं आता है हम आये दिन उनके द्वारा भी घटनाओं को अंजाम दिए जाने की बात भी सुनते हैं। वर्दी हमारे रक्षा के लिए बनी है परंतु हमें कभी-कभी इससे ख़ौफ़ सा लगता है ।

 

अंत में विनती करते हुए उन्होंने लिखा की मुझे नहीं पता कि इस सोच को कैसे बदला जाए या कैसे इन मामलों की बढ़ती हुई तादाद को कम किया जाए परंतु हां इतना जरूर बोलूंगी कि लोगों की मानसिकता को बदलना बहुत ही आवश्यक है साथ ही कुछ कठोर कानून लाकर महिला व बच्चों के हो रहे अपराधों को रोकना भी एक प्राथमिकता हो।

इस पत्र से संजना सिंह को भी महसूस हुआ कि वह भी अपने आसपास घटनाओं को देख रही हैं परंतु इस पर क्या किया जाए वे नहीं जानती। वे कहती है कि मैं यह भी नहीं जानती यह पत्र कितना कारगर सिद्ध होगा पर हां यह जरूर कह सकती हूं कि मैंने अपना कर्तव्य निभाने का एक प्रयास जरूर किया है।

 

संजना सिंह द्वारा लिखा यह पत्र बहुत ही सराहनीय है कम से कम टास्क के माध्यम से ही सही पर युवा साथी हमारे आस पास हो रहे घटनाओं, मुद्दों से अपने आप को रूबरू करते हैं तथा दूसरों से भी यह मुद्दा जब भी साझा करते हैं तो कहीं ना कहीं इन मुद्दों के प्रति युवाओं की जागरूकता देखने को मिलती।